बचपन से सुनते हुए आएँ हैं कि कुछ मामले ऐसे होते हैं, जो हमेशा ही सुर्ख़ियों में बने रहते हैं। ऐसा ही एक मामला 2008 में आया जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इसे देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री कहा जाए शायद ही कुछ गलत होगा। 9 साल के इन्तज़ार के बाद भी इस हत्या की गुत्थी सुलझ नहीं पाई है। आज भी हर कोई यह जानना चाहता है कि आरुषि और हेमराज को किसने मारा?
यह था पूरा मामला

– 9 वर्ष पहले 16 मई 2008 की रात को नोएडा के जलवायु विहार में आरुषि की दर्दनाक हत्या हुई थी। इसके अगले दिन तलवार दंपत्ति के नौकर हेमराज की भी लाश घर की छत से बरामद की गई।
– 23 मई 2008 को हत्या के मामले में आरुषि के पिता राजेश तलवार को गिरफ्तार किया गया।
– जून 2008 में इस मामले की सीबीआई जांच शुरू हुई और डॉक्टर तलवार के कंपाउडर कृष्णा के अलावा दो और नौकरों को आरोपी बनाया।
– जून 2008 में सीबीआई ने कृष्णा और दो अन्य नौकरों का नारको टेस्ट करवाया।
– जुलाई 2008 में राजेश तलवार को जमानत पर रिहा किया गया।
– सितंबर 2008 में सबूतों के अभाव में कृष्णा और दो अन्य नौकरों को भी जमानत पर रिहा किया गया।
– दिसम्बर 2010 में सीबीआई ने निचली अदालत में आरुषि के मां-बाप के पक्ष में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की।
– निचली अदालत ने जनवरी 2012 में मां-बाप के खिलाफ मुक़दमा चलाने का आदेश दिया।
– 25 नवम्बर 2013 को, निचली अदालत ने नूपुर और राजेश तलवार को आरुषि और हेमराज की हत्या का दोषी करार दिया और उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई।
– आरुषि और हेमराज हत्याकांड में गाज़ियाबाद की डासना जेल में उम्र कैद काट रहे आरुषि के माता-पिता को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर को बरी कर दिया।
कुछ सवाल जो अब भी ज़हन में हैं

– कुछ बातें अभी ज़हन में दौड़ती हैं जैसे जब तलवार दंपत्ति के घर में हेमराज की भी हत्या हुई आर उन्हे पता भी नहीं चला।
– पुलिस द्वारा छत की चाबी माँगे जाने पर तलवार दंपत्ति ने चाबी क्यों नहीं दी? जब पुलिस ने छत पर हेमराज की लाश बरामद की तो राजेश तलवार को ने उसके शव को पहचानने से इंकार क्यों कर दिया।
– पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में आरुषि के सिर पर जिस तरह की चोट का ज़िक्र किया गेया वो गोल्फ स्टिक से मेल खा रहा था, और ऐसी स्टिक्स तलवार के घर पर थी।
– आरुषि की हत्या के बाद तलवार दंपत्ति ने अंतिम संस्कार करने में इतनी जल्दबाज़ी क्यों बरती? ऐसे नजाने कितने और सवाल सबके मन में आज भी है।
पुलिस और सीबीआई पर कितना भरोसा?

इस मामले में नोएडा पुलिस को भी कठघरे में खड़ा करके कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अब खुद ही सोचिए आरुषि की हत्या की सूचना मिलने के बाद घटनास्थल पर पहुंची पुलिस टीम घर का ठीक से मुआयना तक नहीं कर पाई। यहाँ तक की उन्हे भनक भी नहीं लगी कि उसी घर की छत पर में हेमराज की एक और लाश पड़ी हुई है। इसी हेमराज को पुलिस आरुशि का हत्यारा मान रही थी।
उसके बाद मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को सौंप दिया गया। हर बार शक सिर्फ़ आरुषि के माता-पिता पर ही हुआ। लेकिन सीबीआई भी सबूत इकट्ठा करने में नाकाम रही। नतीजा ये हुआ कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरुषि के मां-बाप को संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया।
जब सीबीआई जैसी इस हत्याकांड की गुत्थी को नहीं सुलझा पाई तो किस पर भरोसा किया जाए? एक बार सुई फिर उसी सवाल अटक गया है, कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा? अब शायद ही इस मामलें में अब कोई कड़ी जुड़ पाएगी।