मोदी जी ने देश को अपने 67वे जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन करके लोगो को तोहफा दिया है. कहा जा रहा है कि यह परियोजना लोगों की जिंदगी में रोशनी लेकर आएगी. खुद प्रधानमन्त्री जी के भाषण की बात करे तो उन्होंने कहा कि “सरदार सरोवर बांध परियोजना के खिलाफ कई षडयंत्र रचे गए। लेकिन हमारी सरकार ने इसे बनाकर ही दम लिया। जब सरकार ने बांध निर्माण के लिए फंड देने से इंकार कर दिया तब हम वर्ल्ड बैंक के पास गए। लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी। इसके बाद हमने फैसला लिया कि बांध को खुद की मेहनत से बनाएंगे। इतनी बड़ी परियोजना के लिए गुजरात के मंदिरों ने दान दिया।”
प्रधानमन्त्री यही नही रुके उन्होंने आगे कहा “जब में गुजरात का मुख्यमंत्री था तब बीएसएफ पोस्ट में गया। वहां पीने के लिए पानी नहीं था। तब मैंने संकल्प लिया कि देश के लिए नर्मदा का पानी लेकर आऊंगा। जब कोई बेटा सूखा ग्रस्त मां को पानी देता है तो इससे ज्यादा संतोष की भावना और क्या हो सकती है!”
सरदार सरोवर परियोजना.. सरदार पटेल ने नर्मदा नदी पर बांध बनाने की पहल 1945 में की थी| साल 1959 में बांध के लिए औपचारिक प्रस्ताव बना| बाद में सरदार सरोवर बांध की नीव भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 में रखी थी| समुद्र तट से 1057 मीटर की ऊँचाई से मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के अमरकंटक से निकली नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात को पार करते हुए 1312 किलोमीटर का अपना सफर पूरा कर गुजरात में भड़ौच के पास अरब सागर में जा मिलती है। गौरतलब है कि इन राज्यों के 16 जिलों से गुजरने के बाद जब यह समुद्र में जहाँ मिलती है, वहाँ पर डेल्टा (नदी मुख भूमि त्रिकोण) नहीं बनाती। हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि नर्मदा नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 98,799 वर्ग किलोमीटर है और इसका 88.02 प्रतिशत मध्य प्रदेश में, 3.31 प्रतिशत महाराष्ट्र में और बचा 8.67 प्रतिशत गुजरात राज्य की सीमा में आता है। नर्मदा के कछार में करीब 160 लाख एकड़ कृषि योग्य भूमि है और इसमें से 144 लाख एकड़ सिर्फ मध्य प्रदेश में है।
सरदार सरोवर बांध में 4.73 मिलियन क्यूबिक पानी जमा करने की क्षमता है| ये बांध अबतक अपनी लागत से दोगुनी यानी 16000 करोड़ रूपये की कमाई कर चुका है| बांध की क्षमता और क्षेत्रफल के लिहाज से बांध अमेरिका के ग्रांट कुली के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है| इस डैम की उंचाई 168 मीटर और लंबाई 5223 मीटर है| सरदार सरोवर डैम को 1000 वॉट के 620 एलईडी बल्बों से सजाया गया है जिनमें से 120 बल्ब बांध के 30 गेटों पर लगे हैं| अब इस बांध की क्षमता 4,25,780 करोड़ लीटर है, पहले ये पानी बह कर समुद्र में चला जाया करता था|
प्रधानमंत्री की बातों से लगता है कि यही देश हित है, पर अगर देश यही हित है तो मेघा पाटकर 1985 से नर्मदा बचाओ आन्दोलन क्यों कर रही है? यह जानना हमारी आवाम के लिए बेहद ज़रूरी है की ऐसा क्या हुआ की वर्ल्ड बैंक ने भी इस परियोजना को वित्तीय सहायता नही दी| विश्व बैंक ने पर्यावरण का हवाला देते हुए इस परियोजना से अपने हाथ खीचें थे| लेकिन मेघा पाटकर केवल नर्मदा बचाने के लिए ही नही बल्कि उनको बचाने की भी कोशिश कर रही है, जिनके जीवन दाव पर लगे हुए है|
पहले सरदार सरोवर परियोजना पर आते हैं। पचास वर्षों का इसका इतिहास न मालूम कितनी विसंगतियाँ हमारे सामने लाता है। केवड़िया की स्थिति पर अधिग्रहण के करीब 37 वर्ष बाद वर्ष 1999 में अपने आलेख ‘ग्रेटर कॉमन गुड’ में अरुंधती रॉय लिखती हैं ‘केवड़िया कॉलोनी इस दुनिया की कुंजी है। वहाँ जाइये, रहस्य अपने आप आपके सामने उद्घटित हो जाएँगे। अरुंधती रॉय की यह वेदना उनके लिए थी जिन आदिवासियों ने अपने घरों को सरदार सरोवर परियोजना के लिए छोड़ा था, लेकिन यह सब मेघा पाटकर को भी झेलना था, इसका अंदाजा किसी को भी नही था|
इसी विषय पर जानकारी के लिए मेधा पाटकर महाराष्ट्र की अकरानी तहसील के गावों में गई। वहाँ उन्होंने पाया की किस प्रकार सरकारी अधिकारी आदिवासियों को जानकारियाँ देने या उनके अपने भाग्य (नियति या प्रारब्ध) के प्रति कितने उदासीन एवं हृदयहीन हैं। यहीं से मेधा पाटकर की नर्मदा घाटी के साथ की गाथा शुरू होती है।
इसी के समानान्तर मध्य प्रदेश की अलिराजपुर तहसील (अब जिला) में प्रभावित गाँवों को खेड़ुत मजदूर चेतना संगठ ने एकत्रित किया। वे भी 1980 के दशक के प्रारम्भ से आदिवासियों के भूमि एवं संसाधन सम्बन्धी अन्य अधिकारों आजीविका और स्वाभिमान के लिये कार्य कर रहे थे। इस आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता थे शंकर तलवड़े, खजान सिंह, बाबा महरिया, अमित, राहुल बनर्जी और चित्तरूपा पालित। इनका भी मानना था कि घाटी से बाहर जाने का अर्थ है स्वयं को कमतर बनाना क्योंकि भिलाला आदिवासी हमेशा से मानते रहे हैं कि उनकी जीवनशैली बाजारियों से बेहतर है।
ये आदिवासियों के मुद्दें, वहा के लोगो की समस्यायें, उनका पुनर्वास, उनकी पहचान ये सब अब सरकार के लिए बेईमानी हो गये थे| अब सरकार किसी भी सूरत में सरदार सरोवर परियोजना को पूरा करना चाहती थी| बांध की उचाई बढाई गई, नतीजन लोग अपने घरो को छोड़ने पर मजबूर हुए 40 हजार परिवारों को अपने घर, गांव छोड़ने पड़ें|
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सरदार सरोवर बांध को करीब 138 मीटर की अधिकतम ऊंचाई तक भरे जाने से आने वाली डूब के कारण मध्यप्रदेश के 141 गाँवों के 18,386 परिवार प्रभावित होंगे| सूबे में बाँध विस्थापितों के लिये करीब 3,000 अस्थायी आवासों और 88 स्थायी पुनर्वास स्थलों का निर्माण किया गया है|
नर्मदा बचाओ आन्दोलन का दावा है कि बांध को करीब 138 मीटर की अधिकतम ऊंचाई तक भरे जाने की स्थिति में सूबे के 192 गाँवों और एक कस्बे के करीब 40,000 परिवारों को विस्थापन की त्रासदी झेलनी पड़ेगी| संगठन का यह भी आरोप है कि सभी बांध विस्थापितों को न तो सही मुआवजा मिला है, न ही उनके उचित पुनर्वास के इंतजाम किये गये हैं|
मेघा पाटकर ने 1985 में उन्होंने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत की थी जो अब तक जारी है| इस आंदोलन का मकसद बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 138 मीटर किए जाने से मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी के 192 गांवों और इनमें बसे 40 हजार परिवार प्रभावित होने वाले हैं| खबरों के मुताबिक पुनर्वास के लिए जहां नई बस्तियां बसाने की तैयारी चल रही है, वहां सुविधाओं का अभाव है| मेघा इनके पुनर्वास के बेहतर इंतजाम की मांग को लेकर आंदोलन करती रही हैं.|
. इस विवाद पर साल 2002 में डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ड्रोन्ड आउट’ (Drowned Out) भी बन चुकी है. जिसकी कहानी एक आदिवासी परिवार पर आधारित है जो नर्मदा बांध के लिए रास्ता देने की जगह वहीं रहकर डूबकर मरने का फैसला करता है|. इससे पहले साल 1995 में भी इस पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी थी जिसका नाम था ‘नर्मदा डायरी’
प्रकति ने ही हमे जन्मा है और हमारे पारंपरिक निवासियों ने प्रकति को अभी तक बचाए रखा है| अब इन दोनों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह है| क्या हमे कोई ऐसा रास्ता नही खोजना चाहिए अपने जिससे भविष्य सुरक्षित हो और साथ ही हमारे अतीत की जड़े भी, वर्तमान में हमारा साथ दे|
देश हित में विकास बहुत ज़रूरी है, मगर वहा के लोगों से उनकी मूलभूत आजादी और पहचान के बदले नही| मै आधारभूत संरचनाओं का विरोधी नही हू, ना ही मै विकास के विपरीत जाना चाहती हू| मै केवल लोगो के मौलिक आधिकारो, पर्यावरण सुरक्षा और आधारभूत संरचनाओं के विकास के मध्य केवल सामंजस्यपूर्ण रिश्ता चाहती हू, जिससे निरन्तरता बनी रहे, व्यकिगत सम्मान की और विकास की प्रक्रियाओं की|