कहते है बहुत ख़ुशनसीब है वो लोग जिनके पास माँ-बाप होते हैं। माँ-बाप से बढ़कर दुनिया में और कुछ भी नहीं पर शायद आधुनिक दुनिया मे लोग इतने खो गये हैं कि उन्हें अपने माँ-बाप को खुशियों की कोई फ़िक्र ही नहीं रह गयी है। आए दिन रोज़ नए किससे सुनने को मिलते है कभी किसी की संतान अपने माँ को रेलवे स्टेशन पर छोड़ देते है तो कभी अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में। कुछ समय पहले मुंबई की हैरान कर देने वाली ख़बर पढ़ी जहाँ पिछले महीने(अगस्त 2017) को एक फ़्लैट में एक 63 साल की बुज़ुर्ग महिला का कंकाल मिला जिससे एक बार फ़िर हमारे समाज के बुज़ुर्गाें की बदहाली की दशा को सबके सामने लाकर रख दिया है। उस महिला बुज़ुर्ग की दुर्दशा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसका अपना बेटा ऋतुराज साहनी अपने बीवी बच्चों सहित अमेरिका में रहता है और लगभग सवा साल से अपनी माँ के संपर्क में नहीं था। जब वो मुंबई आया तो उसे अपने फ़्लैट में माँ का कंकाल बेड पर मिला।
बुज़ुर्ग महिला अकेलेपन की वजह से भारी अवसाद से ग्रस्त थी जिसके कारण वो समाज से अलग थलग हो गई और खाना पीना तक छोड़ दिया था। बडे़ शर्म की बात है कि महिला के बेटे तक ने माँ की सुध नहीं ली। पति के दुनिया से चले जाने के बाद महिला का सहारा सिर्फ़ उसका बेटा था जो अपनी माँ को छोड़ अमेरिका में ही बस गया।
क्या सज़ा का हकदार वो बेटा नहीं जिसने अपनी लाचार माँ को उम्र के इस पड़ाव में अकेले छोड़ दिया? जवाब है-हाँ, सज़ा का हकदार वो बेटा भी है जिसने समय रहते अपनी बुज़ुर्ग माँ का ख़्याल नहीं रखा और उसे अकेले छोड़ दिया।ऐसे लोगों को कड़ी सज़ा देनी चाहिए जो बूढ़े माँ-पिता को बोझ समझ उनसे दूर रहते है। क्या उन्हे ये नहीे पता कि एक दिन वे खुद भी बूढ़े होंगे?
माता पिता के चरणों में जन्नत होती है क्यांकि उनका दर्जा भगवान से भी उपर होता है और इसलिए उनकी सुरक्षा और सम्मान करना ही क संतान का दायित्व होता है। ‘भारत’ जहाँ मता पिता का सम्मान करने की परंपरा रही है वहाँ अब आए दिन बुज़ुर्गाें के ऐसी दुर्दशा के मामले सामने आ रहे है।
यूनाईटेड नेशन पोपुलेशन फ़ंड के रिर्पोट के मुताबिक करीब साढ़े पाँच करोड़ बुज़ुर्ग रोज़ाना रात को भूखे पेट सोते है। हर 8 में से 1 बुज़ुर्ग को ऐसा लगता है कि उनके होने न होने से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। 24 फ़ीसदी बुज़ुर्ग उपेक्षा का शिकार है यानि की उनकी ज़रूरतों का ध्यान ठीक से नहीे रखा जा रहा है। वैसे तो बुज़ुर्गाें के हितों के लिए वर्ष 2007 में मेंटेनेंस ऐंड वेेलफेयर आॅफ़ पेरेंट्स और सीनियर सिटिज़न एक्ट नामक कानून बनाया गया था लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका बस मज़ाक उड़ा है क्योकि बुज़ुर्गाें के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में बस बढ़ोतरी ही हुई है। लेकिन ऐसा करने वाले संतानों को ये नहीं भूलना चाहिए कि वृद्धावस्था तो उम्र की सीढ़ी का एक पायदान है और इस पड़ाव से एक दिन सबको गुज़रना है। ये नियती का कानून है कि जो जैसा करता है वैसा भरता है इसलिए अपने वृद्ध माता पिताओं का सहारा बने और उनकी आत्मसम्मान की रक्षा करें।