
तीन तलाक महिलाओं पर जुर्म के समान- भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर जाति समुदाय और धर्म के लोग रहते हैं यानी कि यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों की झलक देखने को मिलती है और यहां संविधान सबसे ऊपर माना जाता है। लेकिन आज भी भारत में कुछ ऐसे निजी कानून हैं जो कि भारतीय संविधान के बिल्कुल उलट है। ऐसे निजी कानून ‘रीलीजन फ्रीडम’ यानी की धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय संविधान का मजाक उड़ाते है।
हलाला कुप्रथा-
तीन तलाक एक कुप्रथा तो है ही लेकिन अगर एक बार तलाक देने के बाद वो आदमी वापस अपनी पत्नी के पास जाना चाहता है, तो उस महिला को तीन तलाक़ से ज़्यादा बड़ी कुप्रथा से गुज़रना पड़ता है। इस कुप्रथा का नाम है हलाला।
इस्लाम धर्म में निकाह (शादी) आम शादी की तरह ही होती है जिसमे पति पत्नी अपनी मर्जी से एक साथ रहते है। हलाला एक ऐसी कुप्रथा जिसमें अगर एक मुस्लिम शौहर अपनी बीवी को तलाक देता है तो उसे फिर से अपनी बीवी से निकाह करने के लिए या अगर वो बीवी फिर से अपने शौहर से निकाह करना चाहती है तो औरत को हलाला करना होगा। शरिया के अनुसार अगर किसी आदमी ने अपनी बीवी को तीन बार तलाक दे दिया और वो दोनो अलग रहने लग गये हो और इस दौरान अगर शौहर को अपने फ़ैसले पर दुख होता है और वो अपनी बीवी से दोबारा निकाह करना चाहता है तो वो बिना ‘हलाला’ के निकाह नहीं कर सकता।
‘हलाला’ के लिए बीवी को पहले किसी दूसरे आदमी से शादी करनी होती है और न सिर्फ शादी करनी होगी बल्कि दूसरे मर्द के साथ हमबिस्तर भी होना पड़ता है। उसके बाद जब दूसरा व्यक्ति उस महिला को तलाक दे देगा उसके बाद ही वह अपने पहले शौहर से निकाह कर सकती है। ‘हलाला’ के बाद ही उसके पहले पति से उसका दोबारा निकाह माना जाएगा। हलाला होने की पूरी प्रक्रिया ‘हुल्ला’ नाम से जानी जाती है।
भारत में तीन तलाक के मुद्दे पर देश भर में बहस छिड़ी हुई है-
भारत में तीन तलाक के मुद्दे पर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। 21वीं सदी में भी आज भारत की मुस्लिम महिलाऐं तीन तलाक के ज़जीरों में जकड़ी हुई है। तीन तलाक जैसी कुप्रथा की चपेट में आकर बेसहारा हुई महिलाऐं धर्म के ठेकेदारों से सवाल कर रही है, और सुप्रीम कोर्ट तक जाकर इंसाफ की गुहार लगा रही है। क्योंकि ये मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है। वट्सएप और ईमेल के जरिये तलाक लेना बेहद गंभीर मामला है, और महिलाओं के आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ है।
बेशक तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को ऐतिहासिक फैसला सुनाया, और हुए इस प्रथा को असंवैधानिक करार दे दिया। लेकिन उसके बाद भी तीन तलाक के कई मामले सामने आए हैं। आख़िर इनमे कानून का कोई डर है या नहीं?
इस गंभीर सामाजिक मुद्दे को संविधान द्वारा जल्द ही सुलझाना होगा और मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की परंपरा से निजात दिलानी होगी।