इस प्रदूषण भरे माहौल में जहाँ रोग तेज़ी से लोगों को घेर रहें हैं वहीं दूसरी ओर लोगों की प्रतिरक्षा क्षमता भी लगातार कमज़ोर होती जा रही है। ऐसें में लोगों का ज़्यादा झुकाव आयुर्वेद की तरफ हो रहा है। क्योकिं अंग्रेज़ी उपचार तात्कालिक सिद्ध होते जा है तथा आयुर्वेद का असर ज़्यादा समय तक तो रहता ही है साथ ही यह लोगों की प्रतिरक्षा क्षमता में भी लगातार वृद्धि करता है।
हाल ही में वैज्ञानिकों की एक बहु-विषयक टीम ने एक ऐसे सॉफ्टवेयर को विकसित किया है, जो लोगों को कुशलतापूर्वक ‘आयुर्वेद उपचार दर्शन’ (Ayurvedic treatment philosophy) के अंतर्गत उल्लिखित तीन प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकता है। बता दें कि वैज्ञानिकों की इस टीम में सांख्यिकीविद्, जीनोमिक्स विशेषज्ञ, आयुर्वेद शोधकर्त्ता और कंप्यूटर वैज्ञानिक शामिल थे।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि पश्चिमी दवाओं के विपरीत (जो रोग कि गंभीरता के आधार पर रोगियों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करती हैं) आयुर्वेद में ‘स्वस्थ्य’ व्यक्तियों को भी विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। इस दृष्टिकोण से आयुर्वेद के अंतर्गत प्रत्येक मनुष्य को सात श्रेणियों अथवा ‘प्रकृति’ में वर्गीकृत किया गया है। दरअसल, मनुष्य की प्रकृति का निर्धारण जन्म के समय ही कर लिया जाता है और यह जीवन भर इसी प्रकार बनी रहती है।
- ‘वात’(Vata-V),’पित्त’(Pitta-P) और ‘कफ’(Kapha-K) इसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जिनका निर्धारण व्यक्ति के अनेक लक्षणों जैसे- शारीरिक रचना, भूख, त्वचा के प्रकार, एलर्जी, संवेदनशीलता आदि से किया जाता है। अन्य चार श्रेणियाँ इनके विपरीत हैं।
- अतः वे दवाइयाँ जो ‘वात’ के लिये कार्य करती हैं, वे ‘कल्प’ के लिये कार्य नहीं करती। वस्तुतः शोधकर्त्ता यह पहले ही सिद्ध कर चुके हैं कि आयुर्वेद की सभी श्रेणियों के आणविक स्तरों के मध्य अंतर विद्यमान है। यदि यह कहा जाए कि वॉरफेरिन (warfarin) जैसी दवा का उपयोग ‘ब्लड थिनर’ (blood thinner) के रूप में किस प्रकार जाए, तो निष्कर्ष निकलता है कि भिन्न-भिन्न प्रकृति के रोगियों के लिये दवा की अलग-अलग खुराक की आवश्यकता होती है।
- विदित हो कि ब्लड थिनर हार्ट अटैक के जोखिम को कम करने में सहायता करते हैं तथा रक्त का थक्का नहीं बनने देते।
- किसी रोगी की प्रकृति का निर्धारण करने के लिये एक आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा रोगी का एक घंटे तक साक्षात्कार लेना आवश्यक होता है। परन्तु अब वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न प्रकृति के व्यक्तियों की पहचान करने के लिये एक सॉफ्टवेयर को विकसित किया जा चुका है। दरअसल, इस सॉफ्टवेयर द्वारा उन 147 व्यक्तियों की पहचान की गई थी जिनकी प्रकृति का निर्धारण आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा पहले ही किया जा चुका था।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले चरण में इसके लिये एक एप को भी विकसित किया जा सकता है।
आयुर्वैदिक चिकित्सा के लाभ
- आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के उपरान्त व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक दोनों में सुधार होता है।
- आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बुटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जातीं हैं। अतः यह चिकित्सा प्रकृति के निकट है।
- व्यावहारिक रूप से आयुर्वेदिक औषधियों के कोई दुष्प्रभाव (साइड-इफेक्ट) देखने को नहीं मिलते।
- अनेकों जीर्ण रोगों के लिए आयुर्वेद विशेष रूप से प्रभावी है।
- आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करता है बल्कि रोगों को रोकता भी है।
- आयुर्वेद भोजन तथा जीवनशैली में सरल परिवर्तनों के द्वारा रोगों को दूर रखने के उपाय सुझाता है।
- आयुर्वेदिक औषधियाँ स्वस्थ लोगों के लिए भी उपयोगी हैं।
- आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में सरलता से उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं।
क्या है आयुर्वेद?
आयुर्वेद ‘आयु’ और ‘वेद’ नामक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है जीवन विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार जीवन के उद्देश्यों यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये स्वास्थ्य पूर्वपेक्षित है। यह मानव के सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक पहलुओं का समाकलन करता है, क्योंकि ये सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद में न केवल उपचार होता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है, जिससे जीवन लंबा और खुशहाल हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परन्तु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है।
अतः आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्त्वों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने पर भी बल दिया जाता है, ताकि व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो। आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के इलाज के लिये हर्बल उपचार, घरेलू उपचार, आयुर्वेदिक दवाओं, आहार संशोधन, मालिश और ध्यान का उपयोग किया जाता है।