हिंदू धर्म में एकादशी को लेकर लोगों के बीच खास महत्व है। प्रत्येक चंद्र मास में दो एकादशियॉं आती है। इस तरह से साल भर में 24 एकादशियॉं होती है। लेकिन मलमास यानी कि दो संक्रतियों के बीच पड़ने वाला चंद्र मास में आने वाली दो एकादशियों को मिलाकर 26 हो जाती है। हर एक एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। हर एकादशी की अपनी एक कथा होती है। एकादशी को मोक्ष दायिनी माना जाता है पंरतु एकादशियों में से कुछ एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।
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कुछ लोग इस दिन निर्जल व्रत रखते हैं-
पुराणों के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा विधि–विधान से की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन अन्न दान करने से हज़ारों के बराबर पुण्य मिलता है। कुछ लोग इस दिन निर्जल व्रत रखते है। जो व्रत नहीं रखते है, वह लोग इस दिन सात्विक व्यवहार का पालन करते हुए इस दिन लहसुन, प्याज, मास, मछली, अंडा आदि ना खाएं। साथ ही इस दिन झूठ बोलने से बचें।
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एकादशी के दिन चावल खाने से मनाही होती है-
माना जाता है कि एकादशी पर चावल या उसे बनी कोई भी चीज़ नहीं खानी चाहिए। साथ ही बोला जाता है कि इस दिन चावल खा लिया तो आप अगले जन्म में कीड़े–मकोड़े बन जाओगे। लेकिन इसके पीछे की सच्चाई क्या है ? यह कोई नहीं जानता। जब भी एकादशी आती है तो उस दिन बोला जाता है कि आज आपको चावल नहीं खाना है। यह बात सुनकर सबके दिमाग में बस एक ही बात चलती है कि ऐसा क्यों है ?
इसका जवाब शास्त्रों में बताया गया हैं कि चावल का संबंध जल से किया गया है और जल का संबंध चंद्रमा से है। पाँच ज्ञान इन्द्रियॉं और पाँच कर्म इन्द्रियॉं पर मन का अधिकार होता है। मन और सफेद रंग के स्वामी चंद्रमा है, तो स्वयं जल, रस और भवना के कारक है। एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्रा जितनी कम हो उतना व्रत पूर्ण करने में सरल हो जाता है। आदिकाल में देवर्षि ने एक हज़ार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके विष्णु भगवान की भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ है। चंद्रमा मन को अधिक चंचल न कर पाए, इसलिए एकादशी के दिन चावल का परहेज़ करना चाहिए।