भारतीय धर्म में हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। भारत में मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है, देखा जाये तो भारत में बहुत से मंदिर है जिनकी अपनी अलग ही विशेषता है लेकिन सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा है। आइये जानते हैं इस मंदिर के बारें में कुछ खास तथ्य-
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।
सबसे खास विशेषता सोमनाथ मंदिर की यह है कि यह12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ, एक वैभवशाली और अति सुंदर शिवलिंग, यह मन्दिर इतना समृध्द और सुन्दर है कि उत्तर-पश्चिम से आने वाले आक्रमणकारियों की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी। और अगर हम इसके इतिहास पर नजर डालें तो अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए उसे लूटा गया जिसमें सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि बहुमूल्य वस्तुयें आक्रमण कारी अपने साथ ले गयी।
सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर है और इतिहास गवाह है कि न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई है।
सबसे खास बात इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है। यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है। यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन है लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ है उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ माना जाता है।

यह एक दिशादर्शक स्तंभ है यानी की खंबा जो कि दिशा बताता है, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इस बाणस्तंभ पर लिखा है – ‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग’
इसका अर्थ हुआ कि ‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है।’ ‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है, यानी कि सोमनाथ मंदिर के इस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्टिका तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए, तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है।’
वाकई में यह बहुत ही चौकाने वाले तथ्य है और इसलिये यह मंदिर इतना खास है और कहीं इस तथ्य की प्रमाणिकता भी है जो कि यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि इतने वर्षों पहले जब कोई तकनीकी ही नहीं थी तब भारतीयों को इतना ज्ञान कहां से आया था। इस तथ्य को लेकर कई शोध भी हुये हैं और इसकी सत्यता को पूर्ण रूप से माना भी गया है। इतिहास पर नजर डालें तो सन 600 ई० में इस बाण स्तंभ का निर्माण हुआ था लेकिन इतने प्राचीन समय में यह मैपिंग किसने की होगी कि सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता है ।
ऐसे तथ्य यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि कौन व्यक्ति होगें वह जिनके पास उस समय ऐसी विलक्षण प्रतिभा रही होगी या यह कह सकते हैं उस समय कि तकनीकी जो उनके पास थी, जिसने इतना अद्भुत बनाया, इस मंदिर की भव्यता और रहस्य हमें अपनी ओर खींच लेती है।
मंदिर जाने के लिये निकटतम रेलवे स्टेशन – वेरावल और निकटतम हवाई अड्डा – दीव, राजकोट, अहमदाबाद, वड़ोदरा है।