बच्चों की हालत देश में सुधर रहीं है इसका मतलब कतई ये नही है की देश के बच्चें लगातार किताबों में घुसकर झमाझम अंको की बारिश करने वालें है। हम जानते है की ये अंको वाला मामला, रोज़ के पेट भर के खाने से ज़्यादा ज़रुरी है। हम यहाँ बात रोज़ के काम की नही कर रहे,हम बात कर रहे है देश की। देश बच्चें अब ज्यादातर अपने जन्म के समय कर जी रहें है। यकीन मानिए ये हमारें देश के लिए अच्छी ख़बर है क्योकिं हमारें देश की हालत बच्चों के जीने के मामले में ख़राब ही रहीं है।
आज भी कई सौ बच्चें भारत में जन्म लेते ही मर जातें है। आजीब विडंबना है कि बुलेट ट्रेन और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के इस दौर में हम अपनें नवजात बच्चों को भी ठीक तरह से जीवन जीने का अधिकार नही दे पा रहें है।
भारत की सामाजिक स्थति में बड़े स्तर पर सुधार हो रहे है। इसके परिणाम सामनें आने लगे है।बच्चों के ऊपर ही हमारें देश का भविष्य है। पर ये भविष्य भारत में ज़्यादा जीता नही था। जन्म से ही उसे उसे मरने का ख़तरा रहता था। पर अब वे पहलें से ज़्यादा जी रहें है।

बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की बड़े पैमाने पर पहुंच से देश में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में 8 फीसदी की गिरावट आयी है साथ ही “बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ अभियान” से बच्चों और बच्चियों के बीच मृत्युदर का अनुपात 10 फीसदी घटा है।
राष्ट्रीय जनगणना नमूना सर्वेक्षण प्रणाली आईएमआर की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 में नवजात बच्चों की मृत्युदर में आठ फीसदी की गिरावट आयी है। इसके अनुसार 2015 में प्रति हजार जहां 37 नवजात बच्चों की मौत हुई वहीं 2016 में यह आंकड़ा घटकर 34 प्रति हजार पर आ गया।
मृत्यु दर में गिरावट के साथ ही कुल नवजातों की मौत के मामले में भी 2016 का वर्ष 2015 की तुलना में बेहतर रहा। 2015 में देश में तकरीबन नौ लाख 30 हजार नवजात बच्चों की मौत हुयी जबकि 2016 में यह संख्या घटकर आठ लाख 40 हजार पर आ गयी।
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जहां तक सशक्त क्रियाशील समूह ईएजी वाले राज्यों का सवाल है, उत्तराखंड को छोड़ सभी राज्यों के आईएमआर में वर्ष 2015 की तुलना में कमी दर्ज की गई है।यह कमी बिहार में 4 अंकों, असम, मध्य प्रदेश, उार प्रदेश एवं झारखंड में 3-3 अंकों और छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं राजस्थान में 2-2 अंकों की रही है।
आकड़ो के अनुसार महज एक साल में ये महत्वपूर्ण परिणाम सरकार की विभिन्न पहलों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा बढ़ाने के लिए किये गये देशव्यापी प्रयासों से प्राप्त हुए हैं।