बॉलीवुड में आज हज़ारों ऐसे गाने हैं जिनमे ‘मल्लिका-ए-ग़ज़ल’ बेगम अख़्तर की छाप है। दादरा, ठुमरी व गजल में अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करने वाली बेगम अख्तर ने अपनी गायकी से एक मिसाल कायम की। हो सकता है आज की नई पीढ़ी बेगम अख़्तर से परिचित नहीं हों लेकिन सुननेवालों को उनकी गाई ग़ज़लें आज भी उतनी ही मधुर और नई लगती है।
गूगल ने डूडल बनाकर दी श्रद्धांजलि:-

बेगम अख्तर का आज(7 अक्टूबर) 103 वां जन्मदिन हैं। इस मौके पर गूगल ने भी उनके लिए एक खास डूडल बनाया है। इस डूडल में बेगम अख्तर अपने वाद्य यंत्र के साथ हैं। सामने कुछ लोग सुन रहे हैं। कुछ गुलाब के फूल भी हैं।
माता पिता ने प्यार से नाम रखा ‘बिब्बी’:-
बेगम अख़्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद में हुआ। 1938 में वह आइडियल फ़िल्म कंपनी के काम के लिए लखनऊ आई थीं लेकिन 1941 में मुंबई चली गई। यहाँ आने के बाद उन्हे बिल्कुल अच्छा महसूस नही हुआ और और वह वापस लखनऊ आ गईं।
पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से हुई सम्मानित:-
15 साल की उम्र में अख़्तर बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर उतरीं और अपनी आवाज़ से सबको मोहित कर दिया। कार्यक्रम में भारत कोकिला सरोजनी नायडू भी मौजूद थीं। अख्तरी बाई के गायन से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया।
उनके भारतीय सिनिमा और म्यूज़िक इंडस्ट्री में योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया।
बेगम अख़्तर के ऐसे गाने गाए जो लोगों के दिल में में उतर गए:-

हमरी अटरिया पे आओ सवारिया, देखा देखी बालम होई जाये’ जैसी ठुमरी हो या फिर ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’ जैसी ग़ज़ल। बेगम अख़्तर ने कई ऐसे गाने गाए जो लोगों के दिल और दिमाग़ में में उतर गए।
1974 में बेगम अख्तर ने अपने जन्मदिन के मौके पर कैफ़ी आज़मी की एक गज़ल गाई। ‘सुना करो मेरी जान, इनसे उनसे अफसाने, सब अजनबीं हैं यहाँ, कौन कहाँ किसे पहचाने’
आए नज़र डालते हैं उनके सदाबहार गानों पर:-