दीवाली रोशनी का त्यौहार है और हर साल यह त्यौहार शरद ऋतु में मनाया जाता है। दीवाली का त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। दीवाली का त्यौहार ऐसा है जो एक या दो दिन के लिये नहीं बल्कि पूरे पांच दिन के लिये मनाया जाता है। दीवाली मनाने के पीछे कई कहानी और मान्यतायें प्रचलित हैं आइये जानते हैं दीवाली मनाने के पीछे की कहानी और मान्यताओं के बारें में-
श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं,इसलिये इस दिन दीप जलाने की परंपरा है और यह कहा जाता है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है।
दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। और लोग घर की साफ-सफाई और सजावट का काम शुरु कर देते हैं।

राजा और लकड़हारे की कहानी
एक बार की बात है, एक बार एक राजा ने एक लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे एक चंदन की लकड़ी का जंगल उपहार स्वरुप दे दिया. पर लकड़हारा तो ठहरा लकड़हारा, भला उसे चंदन की लकड़ी का महत्व क्या मालूम, वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर, भोजन बनाने के लिये प्रयोग करता था राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो, उसकी समझ में आ गया कि, धन का उपयोग भी बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाता है. यही कारण है कि लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की एक साथ पूजा की जाती है. ताकि व्यक्ति को धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने कि योग्यता भी आयें।
इन्द्र और बलि कथा
एक बार देवताओं के राजा इन्द्र से डर कर राक्षस राज बलि कहीं जाकर छुप गये, देवराज इन्द्र दैत्य राज को ढूंढते- ढूंढते एक खाली घर में पहुंचे, वहां बलि गधे के रूप में छुपे हुए थे। दोनों की आपस में बातचीत होने लगी, उन दोनों की बातचीत अभी चल ही रही थी, कि उसी समय दैत्यराज बलि के शरीर से एक स्त्री बाहर निकली।देव राज इन्द्र के पूछने पर स्त्री ने कहा, ‘मै, देवी लक्ष्मी हूं. मैं स्वभाव वश एक स्थान पर टिककर नहीं रहती हूं’. परन्तु मैं उसी स्थान पर स्थिर होकर रहती हूं, जहां सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म रहते हैं।
जो व्यक्ति सत्यवादी होता है, ब्राह्मणों का हितैषी होता है, धर्म की मर्यादा का पालन करता है. उसी के यहां मैं निवास करती हूं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी जी केवल वहीं स्थायी रूप से निवास करती है, जहां अच्छे गुणी व्यक्ति निवास करते हैं।
दीवाली एक ऐसा त्यौहार है जो अधंकार को दूर करता है और चारों तरफ रोशनी और समस्त वातावरण जगमगा उठता है बुराई से अच्छाई और सत्य की जीत है दीवाली का त्यौहार।