बात उन दिनों की है जब देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु 27 मई 1964 को हुई थी। इसके तुरंत बाद ही भारत के दुसरे प्रधान मंत्री के रूप में 5 जून को लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमन्त्री के रूप में शपत ली। उन दिनों जवाहर लाल नेहरु का कद इतना बड़ा हो गया था कि भले ही औपचारिक रूप से लाल बहादुए शास्त्री मंत्री प्रधान मंत्री हों पर उनका रूतबा कतई भी नेहरु की परछाई तक नही था। लाल बहादुए शास्त्री से ऐसा व्यवहार किया जाता था कि वे कोई साधारण इंसान हो।

बात तब शुरू होती है जब सवाल तीन मूर्ति भवन का आया। औपचारिक रूप से तीन मूर्ति भवन प्रधान मंत्री निवास माना जाता था। अब इस भवन को लाल बहादुए शास्त्री के सुपर्द किया जाना था। पर नेहरु की बेटी इंद्रा गांघी को ये बात कतई बर्दाश्त नही थी। इंद्रा तीन मूर्ति भवन को राष्ट्रिय महत्व की ईमारत घोषित करवाने की पक्ष में थी। इसी के चलते इंद्रा ने प्रधान मंत्री लाल बहादुए शास्त्री के नाम एक पत्र लिखा।
ऐसा क्या लिखा था पत्र में?
इंद्रा ने पत्र में लिखा था कि “ आदरणीय प्रधान मंत्री जी, तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिता जी पंडित नेहरु का इस्मारक बनाना चाहते है या खुद वहाँ रहना चाहते है? इस बात पर अगर आप जल्दी फैसला करते है तो बेहतर होगा। इंद्रा ने कहा कि तीन मूर्ति भवन रिहायश के लिहाज़ से बहुत बड़ा है। लेकिन पंडित नेहरु की बात अलग थी क्योकिं उनसे मिलने वालों की तादात बहुत ज्यादा थी। लेकिन अब मुलाक़ात करने वालों की तादात उतनी अब ज्यादा ना रहे।
आपकी इंद्रा

बस फिर क्या था, लाल बहादुए शास्त्री ने गुस्से में आकर इन्द्रा जी का वो ख़त फाड़ दिया था।
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